विद्यालयी शिक्षा का उचित विकल्प
विकास और विज्ञान में शिक्षा का ही योगदान रहा है । प्रकृति और गुरुकुल शिक्षा से होते हुए आज हम विद्यालयी शिक्षा के माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर रहे है। आज विद्यालयी शिक्षा लगातार मंहगी होती जा रही है जो समाज में असमानता को बल दे रही है जो कि सभ्य समाज के लिए विकृति है, श्राप है। आज जहाॅ तकनीक का हर क्षेत्र में प्रयोग कर हम समय की बचत, गुणवत्ता, सस्ते दरो पर वस्तु और सूचनाओं को उपलब्ध कराया जा रहा और लोगो ने इस तकनीकी का बढ़-चढ़ लाभ उठा रहे है और सहभागी भी है। ऐसे मे मंहगी हो रही विद्यालयी शिक्षा और शिक्षा से वंचित लोगो तक तकनीकि का प्रयोग कर लोगो तक सस्ती, गुणवत्ता, समान तथा अद्यतन शिक्षा को पहुंचाया जा सकता है, जोड़ा जा सकता है।
इस पर विकल्पो और इसे व्यवस्थित कर विद्यालयी शिक्षा के स्थान में प्रयोग करने की आज आवश्यकता के साथ-साथ उपयोगी भी है। शिक्षा किसी व्यक्ति के विकास और समुदाय की समृद्धि के लिए भी योगदान देती है। ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली कई संचार मोड का उपयोग करके, शिक्षकों और छात्रों दोनों को विचारों और जानकारी का आदान-प्रदान करने, परियोजनाओं पर, घड़ी के आसपास, दुनिया भर में कहीं-भी काम करने की अनुमति देती है। ई-लर्निंग दूरस्थ शिक्षा का एक रूप है, जहां शिक्षक के पास ट्यूटर की भूमिका कम होती है और उसकी शिक्षा में छात्र का योगदान सामान्य अध्ययन की स्थिति से अधिक होता है।
ऑनलाइन शिक्षा कंप्यूटर-आधारित अनुकूली परीक्षण प्रदान करती है और वैकल्पिक शिक्षा और विचारों को बढ़ावा देती है। यह छात्रों, शिक्षकों, माता-पिता, पूर्व छात्रों, कार्यकर्ताओं और संस्थानों और सांख्यिकीय प्रतिक्रिया द्वारा निरंतर सुधार के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करता है। ऑनलाइन शिक्षा छात्रों, शिक्षकों, और स्कूलों और विश्वविद्यालयों को मापने और रैंक करने और छात्रों के सर्वांगीण विकास को पुरस्कृत करने के लिए एक सतत ग्रेडिंग प्रणाली प्रदान करती है
ऑनलाइन और खुले सूचना पोर्टल किसी भी समय कहीं से भी सुलभ है। यह न केवल पुस्तकों और अन्य संसाधनों (व्याख्यान, वक्ताओं के वीडियो) को लाता है, बल्कि ग्रामीण इलाकों में शिक्षा फैलाने के लिए दूरस्थ शिक्षा पहलुओको भी बढ़ावा देता है। यह विशेष आवश्यकताओं वाले छात्रों को ऑनलाइन पाठ्यक्रम भी प्रदान करता है।
ऑनलाइन शिक्षा ऑनलाइन समाधान के माध्यम से कम लागत पर सेवाएं प्रदान करता है। यह ऑनलाइन सिस्टम के माध्यम से "खुद को सीखें" और "सामुदायिक शिक्षा" को प्रोत्साहित करता है और कम कीमत पर सामान्य आधारभूत संरचना प्रदान करके स्वयंसेवकों को बढ़ावा देता है। यह शिक्षकों, स्कूलों और परीक्षा बोर्डों के लिए पाठ्यक्रम प्रदान करने और कम लागत पर परीक्षा आयोजित करने और मूल्यांकन करने के लिए उपकरण प्रदान करता है। यह भविष्य के खर्च पर रिटर्न और मार्गदर्शन के माप की अंतर्दृष्टि भी देता है।
ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली किसी भी समय, कहीं भी सगाई मॉडल बनाती है। सामाजिक और सांस्कृतिक कारण उन्हें रोक रहे हैं, तो घर से ऑनलाइन सीखना लड़कियों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए दरवाजे खोलता है। यह वयस्कों के लिए व्यावसायिक पाठ्यक्रम और आत्म-शिक्षण सीखने को भी बढ़ावा देता है। यह सांस्कृतिक रूप से विविध भारत को एक आम सीखने के मंच पर लाने में मदद करता है, जो सभी भाषाओं में पेश किया जाता है। प्रभावी ऑनलाइन शिक्षण वातावरण छात्रों को सोचने के उच्च स्तर की ओर अग्रसर करते हैं, सक्रिय छात्र भागीदारी को बढ़ावा देते हैं, व्यक्तिगत मतभेदों को समायोजित करते हैं और शिक्षार्थियों को प्रेरित करते हैं।
ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से, शिक्षकों की अधिक छात्रों से अधिक भागीदारी होगी। वे तकनीक का उपयोग कर नई शिक्षण तकनीकों के साथ प्रयोग कर सकते हैं, जो उनके ऑनलाइन पाठ्यक्रमों और आमने-सामने पाठ्यक्रमों के लिए काम करेंगे। यह उन छात्रों तक पहुंचने में सक्षम बनाता है, जो अन्यथा अपने पाठ्यक्रम नहीं ले सकते हैं। ऑनलाइन पाठ्यक्रमों में छात्रों की विविधता ऑनलाइन शिक्षण के सबसे पुरस्कृत पहलुओं में से एक हो सकती है। ऑनलाइन शिक्षण लचीला और सुविधाजनक है। कोई भी कहीं भी पढ़ सकता है, जहां आप इंटरनेट का उपयोग कर सकते हैं। अधिकांश ऑनलाइन प्रशिक्षकों का मानना है कि वे कक्षा में जो कुछ करते हैं, उसके बारे में जागरूकता के कारण वे सामान्य रूप से बेहतर शिक्षक बन जाते हैं। छात्रों के साथ विभिन्न प्रकार के संचार के अवसर हैं।
यह उन्हें सीखने पर नियंत्रण देता है और प्रशिक्षक और अन्य छात्रों के साथ बढ़ती बातचीत प्रदान करता है। ऑनलाइन शिक्षा सुविधाजनक और लचीली है, विशेष रूप से गैर-पारंपरिक छात्रों के लिए नौकरियों, परिवारों आदि के लिए। छात्रों को कहीं भी ड्राइव नहीं करना, पार्किंग ढूंढना, प्रशिक्षकों के कार्यालयों के बाहर इंतजार करना, परिसर में परीक्षण करना आदि जाना है और यात्रा की कमी समय और पैसा बचाती है । यह उन छात्रों के लिए एक सुरक्षित वातावरण भी प्रदान करता है, जो आम तौर पर शामिल होने के लिए भाग नहीं लेते हैं।
1964 में, कनाडा के प्रसिद्ध दार्शनिक मार्शल मैकलुहान ने कहा था- ‘संस्कृति की सीमाएं खत्म हो रही हैं और पूरी दुनिया एक ‘ग्लोबल विलेज’ (वैश्विक गांव) में तब्दील हो रही है।’ करीब ढाई दशक पहले, 1997 में, ब्रिटेन की वरिष्ठ अर्थशास्त्री एवं पत्रकार फ्रैंसिस कैर्नकोर्स ने ‘द डेथ ऑफ डिस्टेंस’ सिद्धांत दिया था जिसमें कहा गया ‘कि दुनिया की दूरियों का अंत हो गया है।’ लेकिन, उन महान विभूतियों ने भी शायद ‘वैश्विक महामारी’ और ‘वैश्विक लॉकडाउन’ जैसे किसी परिदृश्य की कल्पना नहीं की होगी, जिनसे आज पूरी दुनिया एक साथ जूझ रही है। कोरोना के संकट ने आज दुनियाभर में लोगों को अपने-अपने घरों में कैद कर दिया है।
हमारे यहां यह कहावत काफी प्रचलित है- ‘प्रत्येक चुनौती अपने साथ कुछ नए अवसर भी लाती है। जरूरत है उन अवसर को पहचानने और उनका लाभ उठाने की। ‘मुझे संतोष है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने मौजूदा अभूतपूर्व वैश्विक संकट में छिपे अवसर की पहचान की और उनका लाभ उठाने के लिए तत्परता से कारगर प्रयास कर रहा है।
‘लॉकडाउन’ के कारण देशभर में शिक्षण संस्थान बंद हैं। विभाग के सामने दो रास्ते थे। पहला आसान रास्ता था कि इसे ‘छुट्टी के दिन’ मानकर ‘लॉकडाउन’ खत्म होने का इंतजार किया जाये। जबकि, दूसरा रास्ता था, विद्यार्थियों की पढ़ाई बाधित न हो, इसके लिए नए प्रयास किए जाएं। विभाग ने दूसरे रास्ते को चुना और दो हफ्ते में ही ज्यादातर घरों के परिदृश्य बदल गए हैं। आज देश में करोड़ों विद्यार्थी अपने-अपने घरों में बैठकर ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं, ई-लर्निंग प्लेटफॉम्र्स और डिजटल लाइब्रेरीज तक पहुंच रहे हैं और एजुकेशनल चैनलों को देख रहे हैं।
इस नए परिदृश्य में संभावनाओं को नया आकार देने के लिए एचआरडी मंत्रालय ने अपने आपको तेजी से परिवर्तित किया है। शिक्षा के डिजिटल प्लेटफार्मों तक विद्यार्थियों की पहुंच बढ़ाने के लिए मंत्रालय ने कई स्तरों पर प्रयास तेज कर दिए हैं। विभाग की पहल पर देश के अधिकतर स्कूल अपने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म शुरू कर चुके हैं और नए शैक्षणिक सत्र के मुताबिक बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से शिक्षकों के व्याख्यान विद्यार्थियों तक पहुंचाने के साथ-साथ व्हाट्सएप के जरिये भी उन्हें जरूरी नोट्स तथा मंत्रालय के ई-लर्निंग प्लेटफार्मों के लिंक उपलब्ध करा रहे हैं। बहुत से शिक्षक छात्रों के सवाल का जवाब देने के लिए उनके साथ ऑनलाइन चैट भी कर रहे हैं।
इसी बीच 23 मार्च के बाद से मंत्रालय के ई-लॢनंग प्लेटफार्मों तक करीब डेढ़ करोड़ लोग पहुंच चुके हैं। इस दौरान राष्ट्रीय ऑनलाइन शिक्षा मंच Swayam तक पहुंच में पांच गुना से अधिक की वृद्धि हुई है और इसे ढाई लाख से अधिक बार एक्सेस किया जा चुका है। Swayam मंच पर उपलब्ध 574 पाठ्यक्रमों में करीब 26 लाख विद्यार्थी नामांकित हैं। ‘स्वंय प्रभा’ टीवी चैनल को रोज करीब 59 हजार लोग देख रहे हैं। ‘लॉकडाउन’ शुरू होने के बाद से इस चैनल को लगभग सात लाख लोग देख चुके हैं।
‘लॉकडाउन’ के बाद नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी को 15 लाख से अधिक बार एक्सेस किया जा चुका है। इसी कड़ी में एनसीईआरटी के शिक्षा पोर्टल दीक्षा, ई-पाठशाला, एनआरओईआर, एनआईओएस इत्यादि के वरिष्ठ माध्यमिक पाठ्यक्रम, एनपीटीईएल, एनईएटी, एआईसीटीई के स्टूडेंट-कॉलेज हेल्पलाइन वेब पोर्टल, एआईसी प्रशिक्षण और शिक्षण (एटीएएल), इग्नू पाठ्यक्रम, यूजीसी पाठ्यक्रम, शोधगंगा, शोधशुद्धि, विद्वान, ई-पीजी पाठशाला, रोबोटिक्स शिक्षा (ई-यंत्र) जैसी कई अन्य महत्वपूर्ण ऑनलाइन पहल भी हैं, जहां इस दौरान विद्यार्थियों की पहुंच काफी बढ़ गई है। ऑडियो-वीडियो लेक्चर और वर्चुअल क्लास रूम छात्रों, अध्यापकों और शोधकर्ताओं के लिए बेहद उपयोगी साबित हो रही हैं। ई-लर्निंग में आने वाले दिनों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भी बड़ी भूमिका हो सकती है।
आज केन्द्रीय विश्वविद्यालयों और आईआईटी, एनआईटी जैसे उच्च शिक्षा के प्रमुख संस्थानों के ६० फीसदी से अधिक छात्र किसी-न-किसी रूप में ई-लर्निंग की सुविधा का लाभ उठा रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि पढ़ाई का यह नया तरीका देश में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है, जो पहले शायद संभव नहीं था। हालांकि, ई-लर्निंग की राह में कई चुनौतियां भी हैं, लेकिन हमारा मंत्रालय उनके अधिकतम समाधान के लिए प्रयासरत हैं। मैं खुद भी शिक्षण संस्थानों के प्रमुखों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से लगातार संपर्क कर रहा हूं और उन्हें जरूरी निर्देश देने के साथ-साथ उनके सुुझाव को जान रहा हूं। इंटरनेट कनेक्टिविटी और अन्य शिक्षण संस्थानों से रिकॉर्ड किए गए व्याख्यान और हाथ से लिखे नोट्स भी छात्रों के साथ साझा करने को कहा गया है, ताकि सीमित नेटवर्क एक्सेस वाले छात्रों को भी शिक्षण सामग्री मिल सके ।
इसके अलावा हमारा मंत्रालय टेलीविजन के माध्यम से भी दूरस्थ शिक्षा को बढ़ावा दे रहा है, ताकि जिन छात्रों के पास कंप्यूटर या इंटरनेट की सुविधा नहीं है, वे भी घर बैठे पढ़ाई कर सकें । ‘स्वयं प्रभा’ समूह के 32 डीटीएच चैनल उपग्रह के माध्यम से उच्च गुणवत्ता वाले शैक्षणिक कार्यक्रमों का प्रसारण कर रहे हैं। इनके लिए उच्च गुणवत्तापूर्ण सामग्री एनपीटीईएल, आईआईटी, यूजीसी, सीईसी, इग्नू, एनसीईआरटी और एनआईओएस द्वारा प्रदान की जा रही है। इग्नू के रेडियो चैनल ज्ञानवाणी (105.6) और ज्ञानदर्शन भी विभिन्न आयुवर्ग के विद्यार्थियों के लिए शैक्षिक कार्यक्रम और कैरियर के अवसरों की जानकारी प्रसारित कर रहे हैं। उक्त टीवी एवं रेडियो चैनलों के माध्यम से विद्यार्थियों के साथ-साथ बड़ी संख्या में पेशेवर और गृहिणी भी अपना ज्ञान बढ़ा रही हैं तथा कौशल विस्तार कर रहे हैं।
इस तरह ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ और ‘लॉकडाउन’ की बाधा के बीच भी डिजीटल लर्निंग प्लेटफार्मस और टूल्स के जरिये पठन-पाठन जारी है और बड़ी संख्या में विद्यार्थी व अध्यापक इनका लाभ उठा रहे हैं। इन नए अवसरों का उपयोग करते हुए गुणवत्तापूर्ण डिजिटल शिक्षा को ज्यादा से ज्यादा घरों तक पहुंचाने तथा ऑनलाइन शिक्षा पद्धति को और अधिक प्रभावी व रचनात्मक बनाने के लिए एचआरडी मंत्रालय ने सभी संबंधित पक्षों से सुझाव मांगे हैं। साथ ही, डिजिटल कंटेंट की बढ़ती मांग देश में बड़े पैमाने पर रोजगार के नए अवसर भी उपलब्ध कराएगी।
कुल मिलाकर, ‘लॉकडाउन’ ने शिक्षा जगत में ‘डिजीटल क्रांति’ लिए नए द्वार खोल दिए हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की महत्वाकांक्षी पहल ‘डिजीटल इंडिया’ ने सरकार, सरकारी सेवाओं और आम नागरिकों के बीच दूरियां मिटा दी हैं। मोदी सरकार हाई स्पीड इंटरनेट की सुविधा देश की सभी पंचायतों तक पहुंचा चुकी है। अब ‘डिजिटल लर्निंग’ के विस्तार से विद्वान अध्यापकों और सुदूर देहात में रह रहे जिज्ञासु विद्यार्थियों के बीच भी दूरियां खत्म होंगी। कल्पना कीजिए, यदि देश-दुनिया की ज्यादातर बड़ी यूनिवर्सिटीज ऑनलाइन शिक्षा देने लगें, तो छात्रों को अध्ययन के लिए दूसरे शहरों व देशों में जाना नहीं पड़ेगा और काफी कम खर्च में वैश्विक गुणवत्ता की शिक्षा उनके अपने शहर या देश में ही मिल जायेगी।
अमरीका के एक पोर्टल ने ऑनलाइन शिक्षा कार्यक्रम को लेकर वार्षिक रिपोर्ट जारी की है। इसमें कई स्कूलों ने ऑनलाइन शिक्षा में काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। भारत में अभी यह प्रचलन में आने लगी है।
ऑनलाइन शिक्षा इतनी आसान है, जितनी लगती है?
ऑनलाइन लर्निंग छात्रों को कब और कहां अध्ययन करने का विकल्प देता है, न कि आसान और कठिन का। सीखने की प्रक्रिया में समय लगता है। ऑनलाइन शिक्षा में आप कैंपस का समय तो बचा सकते हैं, लेकिन इस बचे समय को आपको सीखने में ही लगाना चाहिए। अध्ययन की अच्छी आदतों और समय प्रबंधन करने वाले छात्र ऑनलाइन शिक्षा में बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। इस माध्यम पर कुशल विद्यार्थी समय पर काम पूरा करते हैं और जटिलताओं के लिए बराबर प्रशिक्षक से संवाद करते हैं।
ऑनलाइन और ऑफलाइन शिक्षा में कितना फर्क है?
शोध से पता चलता है कि किताबी शिक्षा, ऑनलाइन से थोड़ा बेहतर है। ऑनलाइन पाठ्यक्रम में स्क्रीन एजुकेशन है। लेकिन पारंपरिक कॉलेज और विवि भी नियमित रूप से ऑनइलाइन रीडिंग करवाते हैं और ऑनलाइन प्रशिक्षक पुस्तकें मुहैया करवाते हैं। जब पुस्तकें ऑनलाइन और कागज दोनों संस्करणों में आती हैं तो छात्र सुविधा के अनुसार चुन सकते हैं।
ऑनलाइन डिग्री होल्डर को नियोक्ता कम तरजीह देते हैं?
एक हालिया सवेक्षण में सामने आया कि नियोक्ता ऑनलाइन डिग्री होल्डर को कम तरजीह देते हैं। लेकिन समय के साथ इस पूर्वाग्रह में अंतर मिटेगा। क्योंकि ऑनलाइन डिग्री होल्डर प्रबंधकीय मामलों के अच्छे जानकार होते हैं।
ऑनलाइन एजुकेशन प्लेटफॉम्स के आने से दूर-दराज और सभी स्टूडेंट्स तक कम खर्च में क्वालिटी कंटेंट उपलब्ध हो सका है। इससे उन्हें बड़े शहरों या कोचिंग संस्थानों की शरण में जाने की जरूरत नहीं पड़ती और जब ये स्टूडेंट्स कामयाबी का परचम लहराते हैं, तो इससे उन्हें संतुष्टि मिलती है।
एक मध्यवर्गीय परिवार इंजीनियरिंग करने के बाद आइआइएम कोलकाता से एमबीए किया है। परिवार में हमेशा से अच्छी शिक्षा और बेहतर नौकरी हासिल करने पर जोर रहा। इसलिए मैंने पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली और न्यूयॉर्क में कुछ वर्षों तक कंसल्टेंट के रूप में कार्य किया। शिक्षा के क्षेत्र में हुए अनुभवों से जान पाया कि वहां कितना बड़ा गैप है। स्टूडेंट्स ऑनलाइन एजुकेशनल सर्विस की तलाश कर रहे थे, लेकिन उनके सामने सीमित क्वालिटी विकल्प थे। फिर वह क्वालिटी कंटेंट हो या इंटरैक्टिविटी। इसके बाद ही हमने ग्रेडअप लॉन्च करने का निर्णय लिया।
हमने इन सालों में स्टूडेंट्स और पैरेंट्स दोनों की सोच को बदलते देखा है। अब दोनों ही यह समझने लगे हैं कि ऑफलाइन एजुकेशन का एक बेहतर विकल्प बन सकता है ऑनलाइन एजुकेशन। क्लास-रूम में कई पाठ अक्सर बडे उबाऊ होते है । बहुत-से विद्यार्थी उनमें रुचि नहीं ले पाते । अत: वे उन्हें पूरे ध्यान से नहीं सुनते । ऐसे पाठों को रोचक बनाने में टेलीविजन बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है । इसका अपना ही आकर्षण होता है । टेलीविजन द्वारा पढ़ाये गए नीरस पाठों का भी विद्यार्थियों के मस्तिष्क पर बड़ा अच्छा प्रभाव पड़ता है और वे आसानी से उसे भली-भांति समझ लेते हैं । शीघ्र ही टेलीविजन द्वारा शिक्षा का आशातीत प्रसार हो जायेगा । इस समय विशाल देश की आवश्यकताओं के अनुरूप सरकार के पास टेलीविजन सेटों को खरीदने के लिए पर्याप्त धनराशि है ।
टेलीविजन मानव जाति के सबसे महान आविष्कारों में से एक है। आज यह लगभग हर घर, दुनिया में पाया जाता है।टेलीविजन वास्तव में शिक्षा का एक बड़ा स्रोत हो सकता है।
शिक्षा भवन में टेलीविजन की भूमिका को दुनिया भर के कई देशों ने स्वीकार किया है। यह औपचारिक और गैर-औपचारिक शिक्षा दोनों को प्रभावी ढंग से सिखाने के लिए एक उपकरण के रूप में उपयोग किया जाता है। एक टेलीविजन स्कूली पाठ्यक्रम के साथ सिंक्रनाइज़ किया जा सकता था और पढ़ाने के लिए उपयोग किया जा सकता है।
टेलीविजन उन युवाओं और वयस्कों के लिए शिक्षा को प्रभावी ढंग से प्राप्त करने का एक प्रभावी तरीका है,। यह प्रभावी रूप से कौशल प्रदान कर सकता है, जब इसे ठीक से उपयोग किया जाता है।
न्यूटन के गति के नियमों को समझने के लिए स्कूल के घंटों के बाद आज आपको अपने भौतिकी के शिक्षक से संपर्क करने की आवश्यकता नहीं है। आपको बस अपने टेलीविजन में शैक्षिक अनुभाग पर जाने और भौतिकी में कई ट्यूटोरियल कार्यक्रमों से चयन करने की आवश्यकता है। शिक्षा में टेलीविजन की भूमिका को दुनिया भर में व्यापक रूप से स्वीकार किया जा रहा है। विश्व के कुछ दूरस्थ कोनों में भी टेलीविजन की उपलब्धता टेलीविजन के माध्यम से शिक्षा के लिए एक अतिरिक्त लाभ है। टेलीविजन शैक्षिक कार्यक्रमों में आशा की एक झलक है।
1. दृश्य-श्रव्य सामग्री विषय को स्थायी रूप से सीखने में सहायक होती है|
2. दृश्य-श्रव्य सामग्री अनुभवों के द्वारा ज्ञान प्रदान करती है|
3. जहाँ शिक्षक का मौखिक व्याख्यान कम प्रभाव उत्पन्न करता है वहीँ दृश्य-श्रव्य सामग्री पाठ को रोचकता प्रदान कर बोधगम्य बनाती है|
4. यह विचारों को प्रवाहत्मकता प्रदान करती है|
5. यह शिक्षक के समय व धन दोनों की बचत करती है|
6. भाषा सम्बन्धी कठिनाइयों को दूर करती है|
7. अधिगम रुचिकर होने से छात्र अधिक सक्रिय रहते हैं और पाठ को अधिक सरलता से ग्रहण करते हैं|
8. दृश्य-श्रव्य सामग्री की सहायता से छात्र प्राकृतिक व कृत्रिम वस्तुओं के तुलनात्मक भेद को जान पाते हैं|
9. इसमें विद्यार्थी शैक्षणिक गतिविधियों में सक्रिय बने रहते हैं तथा अनुसंधान व परियोजना में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं|
तकनीकी माध्यम को आज व्यवस्थित करना ही होगा तभी शिक्षा का अद्यतन होगा , प्रत्येक तक समान शिक्षा पहुंच पायेगी। अवरोध और कुरीतियों में लगाम लग पायेगी।
अब समय आ गया कि हम इस पर गंभीर हो और बदलते परिदृश्य मे इसकी उपयोगिता का स्वीकारें। तभी एक मूल्यपरक, समान, निःशुल्क, गुणवत्तापूर्ण , समयबद्ध और जन-जन तक शिक्षा पहुंचाई जा सकती है
वेद प्रकाश
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