राजनीति की मुफ़्त स्कीम राष्ट्र हित मे है!!!!
लगातार दूसरी बार इतनी बड़ी जीत इससे पहले किसी पार्टी को कभी नहीं मिली. अपनी इस जीत का श्रेय ख़ुद अरविंद केजरीवाल ने अपनी सरकार के काम को दिया है.
इस चुनाव में आम आदमी पार्टी ने नारा भी दिया था - 'मेरा वोट काम को, सीधे केजरीवाल को'
केजरीवाल सरकार की मुफ़्त स्कीम
वैसे तो दिल्ली सरकार कई स्कीमें चलाती है, लेकिन चर्चा उन स्कीमों की ज्यादा रहती है जिनमें लोगों को मुफ़्त में आधारभूत सुविधाएं मिलती हैं. ऐसी चर्चित मुफ़्त स्कीमों में शामिल हैं:
•दिल्ली में 400 यूनिट बिजली की खपत पर सिर्फ़ 500 रुपए का बिल आता है. पाँच साल में बिजली के दाम में कोई बढ़ोतरी नहीं
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क्या दिल्ली में अरविंद केजरीवाल मुफ़्त पानी देने में कामयाब हो पाए?
•महिलाओं के लिए बस यात्रा मुफ़्त है
•20 हज़ार लीटर तक पानी के इस्तेमाल पर जीरो बिल
•मोहल्ला क्लीनिक में मुफ़्त उपचार की व्यवस्था
दिल्ली सरकार ने अपने मुफ़्त में हो रहे काम काज को काफ़ी प्रचारित किया. उनकी जीत के बाद इस बात की चर्चा शुरू हो गई कि आख़िर कितने दिनों तक चल पाएगी दिल्ली सरकार की ये मुफ़्त योजना, और दिल्ली के ख़ज़ाने पर इसका कितना असर पड़ेगा?
बिजली - दिल्ली सरकार की जारी अपने रिपोर्ट कार्ड के मुताबिक़ 2018-19 में उन्होंने सब्सिडी पर 1700 करोड़ रुपए ख़र्च किया. दिल्ली में कितने परिवार हैं जिनका बिजली बिल शून्य आता है इसके आंकड़े हर महीने बदलते रहते हैं, लेकिन दिसंबर महीने के आंकड़े के मुताबिक़ तक़रीबन 48 लाख लोगों का बिल शून्य आया था.
यात्रा - महिलाओं की मुफ़्त में बस यात्रा कराने की घोषणा दिल्ली सरकार ने चुनाव से कुछ महीने पहले ही की थी. राज्य सरकार का दावा है कि इस पर 108 करोड़ रुपए का ख़र्च आया. हालांकि इस योजना का लाभ अब तक कितनी महिलाओं को मिला है इसका कोई आंकड़ा नहीं है, लेकिन डीटीसी के मुताबिक़ महिलाओं द्वारा डीटीसी के इस्तेमाल में 40 फ़ीसदी इज़ाफ़ा हुआ है.
पानी - 2019-20 के दिल्ली सरकार के आंकड़ों के मुताबिक़ इस स्कीम पर 468 करोड़ रुपए ख़र्च किए. उनके मुताबिक़ 20 हज़ार लीटर तक के पानी के इस्तेमाल पर जीरो बिल के बाद भी दिल्ली जल बोर्ड का राजस्व में इज़ाफ़ा हुआ है. तक़रीबन 14 लाख लोगों को इस स्कीम का फायदा पहुंचा है.
मोहल्ला क्लीनिक - राज्य सरकार ने तक़रीबन 400 मोहल्ला क्लीनिक खोले हैं. इस साल के बजट में सरकार ने 375 करोड़ रुपए का बजट मोहल्ला क्लीनिक के लिए रखा है.
राज्य सरकारों की आर्थिक स्थिति पर जारी आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक़ जब से दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार आई है, तब से शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर ख़र्चा बढ़ गया है.
दिल्ली का राजस्व संतुलन चिंता का विषय बना हुआ है. राजस्व संतुलन का मतलब ये कि ख़र्चे और आय में संतुलन ठीक है या नहीं. आरबीआई के जारी आंकड़ों के मुताबिक़ आज से 10 साल पहले दिल्ली राज्य के जीडीपी का 4.2 फीसदी सरप्लस में था. दस साल बाद 2019-20 में ये घट कर 0.6 फीसदी रह गया है. इसका साफ़ मतलब ये निकाला जा सकता है कि जितना पैसा दिल्ली सरकार के ख़ज़ाने में जमा हो रहा था, सभी ख़र्चे पूरे करने के बाद वो धीरे-धीरे ख़ाली होता जा रहा है और अब ख़त्म होने की कगार पर है.
हालांकि दिल्ली की स्थिति बाक़ी राज्यों के मुताबिक़ बेहतर ज़रूर है. लेकिन जानकार मानते हैं कि अगर ये योजनाएं बिना किसी आय के नए संसाधन जुटाए जारी रहेंगी तो आने वाले दिनों में चिंता का सबब बन सकती हैं.
दिल्ली सरकार के खर्च का ग्राफ
दिल्ली सरकार के लिए एक और चिंता की बात है. हर राज्य सरकार अपने ख़ज़ाने में बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर खड़े करने के लिए हमेशा साल दर साल कुछ पैसा अलग रखती है, जैसे नए अस्पताल, स्कूल फ्लाइओवर बनाने के लिए बड़ा ख़र्चा लगता है जो एक दिन में तैयार नहीं होते, और ख़र्चा भी एक दिन में नहीं होता. इसे कैपिटल एक्सपेंडिचर कहते हैं.
पिछले कुछ वक्त से राज्य सरकार के इस फंड में काफ़ी कमी आई है. 2011- 12 में राज्य के जीडीपी में कैपिटल एक्सपेंडिचर 1.16 फीसदी था, जो अब घट कर 2018-19 में 0.54 फीसदी रह गया है.
दिल्ली सरकार का पक्ष
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से चुनाव से पहले कई इंटरव्यू में ये सवाल पूछा गया - दिल्ली सरकार मुफ्त में बिजली पानी कैसे दे पा रही है? इन योजनाओं के लिए पैसा कहां से आता है? हर जवाब में उन्होंने एक ही बात दोहराई. उनके मुताबिक़ गुजरात के मुख्यमंत्री ने अपने लिए एक हेलिकॉप्टर ख़रीदा 191 करोड़ में. हमने वही पैसा इन योजनाओं पर लगाया है. हमारे ऐसे ख़र्चे नहीं हैं.
एक निजी चैनल को दिए इंटरव्यू में अरविंद केजरीवाल ने कहा, "अगर दिल्ली में बिजली-पानी मुफ़्त कर सकते हैं तो हरियाणा वाले भी कर लें. वो क्यों नहीं करते फ्री. इसके लिए इमानदार होना ज़रूरी है. सब पूछते हैं, इसके लिए लगने वाला पैसा कहां से आया? पैसा इसलिए आया क्योंकि सरकारी कामों में होने वाला भ्रष्टाचार हमने ख़त्म कर दिया. मैं पैसा नहीं खाता, मेरे मंत्री नहीं खाते. इसलिए पैसा बच रहा है."
चैनल के इंटरव्यू में उनसे ये सवाल भी पूछा गया कि ये फ्री कल्चर कब तक चलेगा? जवाब में अरविंद ने कहा, "अगर मैंने इमानदारी का पैसा बचा कर, भ्रष्टाचार ख़त्म करके, लोगों का बिजली पानी माफ़ कर दिया. उनकी ज़िंदगी में थोड़ी राहत दे दी तो मेरा क्या क़सूर है."
दिल्ली सरकार की फ्री-योजनाओं से सबक़ लेकर दूसरी राज्य सरकारें अब इस पर अमल करने लगी हैं. पश्चिम बंगाल सरकार में ममता बैनर्जी ने इस साल बजट में 75 यूनिट बिजली खपत वाले परिवारों को सब्सिडी देने का एलान किया है.
दिल्ली सरकार की तरह ही अब सब सरकारें यही तर्क दे रही हैं - सब्सिडी वाला पैसा जनता का है और इस क़दम से उन्हीं को वापस किया जा रहा है.
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दिल्ली सरकार के ख़ज़ाने पर सीएजी रिपोर्ट
पिछले साल दिसंबर में दिल्ली सरकार के ख़ज़ाने का हाल बताने वाली सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक़ भी दिल्ली सरकार के ख़ज़ाने में सरप्लस की बात है. लेकिन यहां ये भी जानना ज़रूरी है 2013-14 से अब तक दिल्ली सरकार हमेशा से सरप्लस में ही रही है.
दिल्ली के पूर्व चीफ़ सेक्रेटरी ओमेश सेहगल के मुताबिक़ किसी सरकार का बजट सरप्लस में होना उसके अच्छे प्रदर्शन की निशानी नहीं हो सकती. उनके मुताबिक़, "सरप्लस में बजट होने का मतलब है कि कल्याणकारी योजनाओं में सरकार ने ख़र्च ही नहीं किया है."
कल्याणकारी योजनाओं की परिभाषा बताते हुए ओमेश सेहगल कहते हैं, "ऐसी योजनाएं, जिनसे लोगों को लाभ तो मिले ही उससे सरकार को भी फ़ायदा पहुंचे."
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अपनी बात को विस्तार से समझाते हुए ओमेश कहते हैं, "अगर सरकार ने नए अस्पताल बनाए होते, तो उसमें इलाज के लिए आने वालों से सरकार को फायदा पहुंचता और लोगों को भी. लेकिन राज्य सरकार ऐसा नहीं कर रही."
सरकार नए स्कूल बनाती तो नए टीचर भर्ती होते, दूसरे और कर्मचारियों को रोज़गार मिलता. लेकिन ये सरकार केवल क्लासरूम ही बना रही है. इसे कल्याणकारी योजनाएं नहीं कहते.
दिल्ली सरकार के आय के स्रोत
दिल्ली सरकार की आमदनी के दो सबसे अहम स्रोत हैं - जीएसटी और दूसरा एक्साइज़ से होने वाली आमदनी. इसके आलावा हर राज्य सरकार को कुछ केन्द्रीय अनुदान भी मिलता है और कुछ कमाई जमा पैसे के लाभांश से भी होती है.
दिल्ली सरकार अभी मुफ्त में जो योजनाएं चला रही हैं उससे सरकार को भी रिटर्न मिलता नज़र नहीं आ रहा. वो पैसा सरकार के ख़र्चे में जुटता ही जा रहा है.
ओमेश सेहगल का मानना है कि दिल्ली सरकार जिसे अपना काम और रिपोर्ट कार्ड बता रही है, दरअसल वो सरकार का काम है ही नहीं. सरकार का काम सड़क, स्कूल, फ्लाईओवर बनाना है. कल्याणकारी योजनाओं में ख़र्च करना है.
अगर सरकार मुफ्त में बिजली-पानी देना जारी रखेगी, तो उन्हें कल्याणकारी योजनाओं में कटौती करनी पड़ेगी.
पिछले पाँच सालों में नए फ्लाइओवर, नए स्कूल और अस्पताल कितने बने हैं, ये आंकड़े इस सरकार ने कभी नहीं दिए.
उनके मुताबिक़ जनता को नए फ्लाइओवर, नए स्कूल और नए अस्पताल दिए बिना मुफ्त में बिजली पानी और बस सेवा का ख़र्च दिल्ली की सरकार जारी तो रख सकती है, लेकिन ऐसा दिल्ली के लिहाज़ से ख़तरनाक होगा.
उनके अनुसार दिल्ली में लगातार बढ़ती आबादी को देखते हुए दिल्ली को इन चीज़ों की ज्यादा ज़रूरत है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शुक्रवार को सेप्टिक टैंक मुख्यमंत्री योजना की शुरुआत की है। उन्होंने कहा कि इससे दिल्ली में सेप्टिक टैंक में उतरकर अब किसकी मौत नहीं होगी और इससे दिल्ली व यमुना को साफ होगी। उन्होंने कहा है कि अभी तक जो भी स्पिटक टैंक साफ करते थे वो बिना किसी सुरक्षा उपकरणों के लोगों को उसमें उतर देते थे। इतना ही नहीं मलबा निकालकर उसे नाले में डाल देते थे जिससे दिल्ली में और यमुना गंदी हो जाती है।
सीएम केजरीवाल ने बताया कि आज से दिल्ली में 'मुख्यमंत्री सेप्टिक टैंक सफाई योजना' शुरू कर रहे हैं। इस योजना में सेप्टिक टैंक की फ्री में सफाई होगी। उन्होंने कहा कि इसके लिए अगले महीने टेंडर निकाला जाएगा। जिस कंपनी को टेंडर मिलेगा वह अपने 80 ट्रैक लगाएगी। कोई भी फोन करके सेप्टिक टैंक साफ करने की मांग कर सकता है। फिर उस शख्स को वो उसके हिसाब से समय दिया जाएगा।
कंपनी सेप्टिक टैंक से मलबा उठाकर एसटीबी प्लांट में ले जाएगी। इस तरह से ऑथराइजड और लीगल तरीके से काम होगा और यह दिल्ली की सफाई की दिशा में बड़ा कदम होगा। यह यमुना की सफाई में बड़ा कदम होगा। उन्होंने कहा कि इससे सबसे ज्यादा फायदा दिल्ली की कच्ची कलोनियों में रहने वाले लोगों को फायदा होगा।
दिल्ली को केंद्र से सिर्फ़ 325 करोड़ रुपए मिलते हैं, इस पर उन्हें एतराज है कि दिल्ली का हिस्सा बढ़ना चाहिए क्योंकि दिल्ली की अपनी ज़रूरतें हैं लेकिन दिल्ली को मुफ़्तख़ोरी की आदत डालने के लिए उनके खज़ाने का मुँह खुला हुआ है। वह कहते हैं कि दिल्ली में पूरे देश से बिजली सस्ती है। बीजेपी शासित गुरुग्राम में 200 यूनिट बिजली 910 रुपये की है। नोएडा में 200 यूनिट बिजली के दाम 1310 रुपये हैं। बीजेपी शासित मुंबई में 200 यूनिट बिजली के दाम 1410 रुपये हैं। वहीं, कांग्रेस शासित अजमेर में 200 यूनिट बिजली के दाम 1588 रुपये हैं। जबकि दिल्ली में 200 यूनिट बिजली के दाम केवल 408 रुपये हैं।
यह इसलिए नहीं है कि दिल्ली सरकार ने कोई करिश्मा किया है और बिजली सस्ती हो गई है। दिल्ली सरकार के पास सब्सिडी रूपी अलादीन का चिराग है जिसे घिसकर वह जनता को सस्ती बिजली बाँट रहे हैं। दूसरे राज्यों को विकास की तरफ़ भी ध्यान देना होता है जबकि लगता है कि दिल्ली सरकार को इसकी फ़िक्र नहीं है। वे दिल्ली नगर निगम के सफ़ाई कर्मचारियों को सैलरी बाँटने के लिए फ़ंड नहीं दे सकते लेकिन मुफ़्त खैरात बाँटने के लिए कोई भी योजना घोषित कर सकते हैं। ख़ुद दिल्ली के पीडब्ल्यूडी ने एक आरटीआई में माना है कि पिछले पाँच सालों के दौरान दिल्ली की आप सरकार ने एक भी फ्लाई ओवर का प्रोजेक्ट तैयार नहीं किया, जबकि केजरीवाल ख़ुद 23 फ्लाई ओवर बनाने का झूठा दावा कर चुके हैं और उनके इस दावे की पोल भी खुल चुकी है। अब दिल्ली में विधानसभा के चुनाव आने वाले हैं तो खैरातों की पोटली खुल गई है। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा। दो साल पहले नगर निगम के चुनाव हुए थे तो उससे ठीक पहले केजरीवाल ने एलान किया था कि नगर निगम में जीते तो फिर दिल्ली का प्रॉपर्टी टैक्स माफ़ कर दिया जाएगा। दिल्ली की जनता की भी पौ-बारह है। विधानसभा चुनाव आए हैं तो बिजली के बिल माफ़ हो रहे हैं। नगर निगम में जीत जाते तो प्रॉपर्टी टैक्स माफ़ हो जाता।
आने वाले दिनों में केजरीवाल यह भी कह सकते हैं कि दिल्लीवालों को इनकम टैक्स भी नहीं भरना होगा। वह भी दिल्ली सरकार भरेगी। दिल्ली के स्कूलों की फ़ीस दिल्ली सरकार माफ़ कर सकती है। इन सारी सुविधाओं के बदले में सरकार सब्सिडी देगी।
दिल्ली सरकार का 60 हज़ार करोड़ का बजट है और दिल्ली के मुख्यमंत्री बार-बार कहते हैं कि हमारे पास पैसे की कोई कमी नहीं है। पिछली सरकारों की नीयत में खोट था। इस सरकार की नीयत साफ़ है। सारा बजट सब्सिडी में ख़र्च किया जा सकता है क्योंकि आम आदमी पार्टी इसे ही विकास मानती है। हो सकता है कि यह उसके शासन का यही एक मॉडल हो लेकिन नीयत के साथ-साथ सरकार का खज़ाना भी साफ़ हो रहा है।
अब तो दिल्ली की जनता को ऐसा लगने लगा है कि चुनाव आए तो समझो कि उत्सव आ गया, जनता की पौ बारह हो गई। दिल्ली बहुत लकी है कि पिछले पाँच सालों से यह उत्सव बार-बार देख रही है- 2022 में नगर निगम, 2024में लोकसभा और 2025 में फिर से असेम्बली और अब 2027 में नगर निगम, 2029 में लोकसभा के चुनाव .
राजनीतिक दल जो वादे कर रहे हैं या जिन वादों के दम पर वे सत्ता में आ जाते हैं, जनता को उसका लाभ मिलना चाहिए, न कि नुक़सान। यह बात जनता समझने की कोशिश नहीं करती कि वास्तव में वह धन जनता की जेब से ही जा रहा है।
आप सरकार ने बिजली के बिल हाफ़ करने का वादा इस तर्क के साथ किया था कि अगर वह सत्ता में आ गई तो बिजली कंपनियों की लूट को रोककर उनका पर्दाफ़ाश करेगी। वह इन कंपनियों को मजबूर करेगी कि बिजली के बिल कम किए जाएँ। उस दिशा में क्या हुआ, सभी जानते हैं। इन कंपनियों के ख़िलाफ़ सीएजी जाँच हुई लेकिन उससे पहले ही कोर्ट का फ़ैसला आ गया कि जाँच हो ही नहीं सकती। ख़ैर, वह एक अलग मुद्दा है लेकिन आप सरकार जनता को बिजली के बिल में कैसे राहत देगी, यह उसकी 2013 में बनी 49 दिन की सरकार से ही साबित हो गया था। आप सरकार ने तब तीन महीने के लिए बिजली के बिलों में कटौती की थी और उसके बदले सरकार को 272 करोड़ रुपये की सब्सिडी चुकानी पड़ी थी। 20 हज़ार लीटर मुफ़्त पानी पिलाने पर भी मोटी रक़म जाती है। यह राशि पीडब्ल्यूडी और एमसीडी के हिस्से जैसी मदों से काटकर दी गई।
जनता इन्हीं वादों के कारण ‘आप’ की ऐसी दीवानी हुई कि 2015 के चुनावों में उसे 70 में 67 सीटें जिता दीं। नतीजा यह है कि पिछले चार सालों में आप सरकार प्राइवेट कंपनियों को सस्ती बिजली के कारण क़रीब 8000 करोड़ रुपए दे चुकी है। यह वही आम आदमी पार्टी की सरकार है जो बिजली कंपनियों को खुलेआम चोर कहती है लेकिन उसे इतनी मोटी रक़म का भुगतान भी करती है। अगर यह राशि बिजली कंपनियों को नहीं जाती तो हो सकता है कि दिल्ली में कुछ फ्लाई ओवर बन जाते या फिर बुरी तरह टूट चुकी सड़कों की मरम्मत हो जाती। अब केजरीवाल कह रहे हैं कि सब्सिडी पर कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। वह दावा करते हैं कि गर्मियों में 60 फ़ीसदी जनता का बिल 200 यूनिट से कम होता है और सर्दियों में यह 80 फ़ीसदी के क़रीब हो जाता है। जब इतने लोगों को मुफ़्त बिजली मिलेगी और केजरीवाल कहें कि इससे सरकार पर बोझ नहीं पड़ेगा तो ज़ाहिर है कि वह अपने आपको तो नहीं लेकिन जनता को धोखा देने की कोशिश ज़रूर कर रहे हैं।
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की जनता की नब्ज़ पकड़ रखी है। उसे पता है कि अगर वह जनता को कुछ भी मुफ़्त देने का नाम लेगी तो मुफ़्तख़ोरी के नाम पर दिल्लीवाले उसके पीछे खिंचे आएँगे। पूरे संसार में सब्सिडी जैसी बीमारी को अर्थव्यवस्था के लिए घुन कहा जाने लगा है। हमने ख़ुद किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी रोक दी है। पेट्रोल-डीजल को ही नहीं बल्कि किसानों की ख़ाद को भी खुले बाजार के लिए छोड़ दिया गया है लेकिन देश की राजधानी सब्सिडी के नए युग में प्रवेश कर चुकी है।
ग़रीबों को सरकारी मदद मिले, इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता लेकिन वोट ख़रीदने के लिए सरकारी खज़ाने को लुटाया जाए, इसकी इजाज़त तो किसी को नहीं मिलनी चाहिए।
जनता को बिजली मिले, पानी मिले यह सरकार की ज़िम्मेदारी है लेकिन मुफ़्त बिजली-पानी के लालच में वोट बटोरे जाएँ, आख़िर यह कब तक चलेगा। राजधानी पर आबादी का कितना बोझ है, यह सभी जानते हैं और इस प्रकार के लालच से दिल्ली में कितने और लोग आकर बस जाएँगे, यह भी सोचने की बात है। ग़रीबों के लिए ख़ास इंतज़ाम करना सरकार का कर्तव्य है। ग़रीबों को उनकी इनकम के सबूत के आधार पर अगर मुफ़्त स्वास्थ्य सुविधाएँ मिलें या एजुकेशन फ़्री हो तो भी समझ में आता है लेकिन आप सरकार जो तरीक़ा अपना रही है उसे ग़ैर-क़ानूनी और अनैतिक कहा जा सकता है। हैरानी की बात यह है कि चुनाव आयोग या सुप्रीम कोर्ट इन वादों पर कान नहीं धरते और मूक दर्शक बने रह जाते हैं।
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