G-7 . 45वां संस्करण

 


इस बार भारत को भी जी-7 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया गया है। 24 से 26 अगस्त तक फ्रांस में आयोजित होने वाले इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिस्सा ले रहे हैं।



पहली बार भारत को साल 2003 में जी 7 सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया गया था। तब भी यह सम्मेलन फ्रांस में ही आयोजित किया गया था। इस बार फ्रांस के बियारिज में इस सम्मेलन का 45वां संस्करण होने जा रहा है। इसमें दुनिया के टॉप लीडर्स के बीच कश्मीर के मुद्दे पर भी चर्चा होने वाली है। 


जी-7 दुनिया के सात सबसे विकसित और औद्योगिक महाशक्तियों का संगठन है। इसे ग्रुप ऑफ सेवेन (G7) के नाम से भी जाना जाता है।
इस संगठन में जो देश शामिल हैं - 
संयुक्त राज्य अमेरिका (USA)
फ्रांस
यूनाइटेड किंगडम (UK)
कनाडा
इटली
जर्मनी
जापान
जी7 शिखर सम्मेलन में यूरोपीय संघ भी प्रतिनिधित्व करता है।
1970 के दशक में जब वैश्विक आर्थिक मंदी और तेल संकट बढ़ रहा था, तब फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति बैलेरी जिस्कॉर्ड डी एस्टेइंग ने जी-7 की आधारशिला रखी। 1975 में जी-7 का गठन हुआ। तब इसमें सिर्फ 6 संस्थापक देश थे। कनाडा इसमें शामिल नहीं था।
यह सम्मेलन पहली बार 1975 में ही फ्रांस की राजधानी पेरिस के पास स्थित शहर रम्बोइले में हुआ था। 1976 में कनाडा को इस समूह में शामिल किया गया। तब जाकर इस समूह का नाम जी7 रखा गया।
जी-7 एक अनौपचारिक संगठन है। इसका न तो कोई मुख्यालय है, न ही चार्टर या सचिवालय। जी-7 में किस तरह के मुद्दों पर होती है चर्चा?
  जी-7 की परंपरा रही है कि जिस देश में यह सम्मेलन आयोजित किया जाता है वही इसकी अध्यक्षता करता है। साथ ही मेजबान देश ही सम्मेलन में किन मुद्दों पर बात होगी, इसका निर्धारण भी करता है। जी-7 के वार्षिक शिखर सम्मेलन में दुनिया के अलग-अलग ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा होती है। साथ ही उसका समाधान तलाशने की कोशिश की जाती है।
      जी-7 में जो देश शामिल हैं, वे कई मामलों में दुनिया में शीर्ष स्थान पर कायम हैं। ये देश दुनिया में सबसे बड़े निर्यातक हैं। इन देशों के पास सबसे बड़ा गोल्ड रिजर्व है। ये देश यूएन के बजट में सबसे ज्यादा योगदान देते हैं। ये सभी सात देश दुनिया में सबसे बड़े स्तर पर परमाणु ऊर्जा (Nuclear Energy) का उत्पादन करते हैं। जी-7 में और किन संस्थाओं को बुलाया जाता है? जी-7 बनने के बाद इसके शुरुआती दौर में इसमें शामिल सात देश ही इसके सम्मेलनों में भाग लेते थे। लेकिन 1990 के दशक के अंतिम दौर में एक नई परंपरा शुरू हुई। जी-7 के सम्मेलनों में कई अन्य संस्थाओं को भी बुलाया जाने लगा। जिन संस्थाओं को इसके सम्मेलनों में बुलाया जाता है, वे हैं-
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)
विश्व बैंक (World Bank)
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (International Energy Agency)
वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन
यूनाइटेड नेशंसo
अफ्रीकन यूनियन
इसके अलावा जी-7 के सम्मेलनों में समय-समय पर अन्य देशों को भी आमंत्रित किया जाता रहा है। ऐसे देश जो आर्थिक रूप से प्रगति कर रहे हों। इस बार किन मुद्दों पर हो सकती है चर्चा
कश्मीर मुद्दा
ग्लोबल कॉर्पोरेट टैक्स कोड
ईरान व अमेरिका के बीच तनाव
जलवायु आपातकाल
भारत का परमाणु प्रोजेक्ट
आतंकवाद
यूक्रेन मामले का समाधान


अर्थव्यवस्थाओं के साथ, वैश्विक शुद्ध संपत्ति ($280 ट्रिलियन) का 62% से अधिक का प्रतिनिधित्व करते हैं। जी७ देश नाममात्र मूल्यों के आधार पर वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 46% से अधिक और क्रय-शक्ति समता के आधार पर वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 32% से अधिक का प्रतिनिधित्व करते हैं।


        समूह-8 (अंग्रेजी: Group of Eight =G8) एक अन्तर्राष्ट्रीय मंच (फोरम) है। इस मंच की स्थापना फ्रांस द्वारा 1975 में समूह-6 के नाम से विश्व के 6 सबसे धनी राष्ट्रों की सरकारों के साथ मिलकर की थी, यह राष्ट्र थे फ़्रांस, जर्मनी,इटली, जापान, ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका। 1976 में इसमे कनाडा को शामिल कर लिया गया और मंच का नाम बदलकर समूह-7 कर दिया गया। 1997 में इसमें रूस भी सामिल हो गया और मंच का नाम समूह-8 हो गया। समूह-8 के अन्तर्गत सदस्य राष्ट्र यूरोपियन संघ का प्रतिनिधित्व भी करते हैं पर इसे एक सदस्य या मेजबान के रूप में अभी शामिल नहीं किया गया हैं। "समूह-8" को इसके सदस्य राष्ट्रों या वार्षिक रूप से होने वाले समूह-8 शिखर सम्मेलन जिसमे सदस्य राष्ट्रों की सरकारों के प्रमुख भाग लेते हैं, के लिए प्रयोग किया जा सकता है। प्रत्येक वर्ष, इस बैठक की मेजबानी का दायित्व सदस्य राष्ट्रों में इस क्रम से घूमता है: फ़्रांस, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, रूस,जर्मनी, जापान, इटली और कनाडा।
      G–7, विश्व के सर्वोच्च सम्पन्न औद्योगिक देशों– फ्रांस, जर्मनी, इटली, यूनाइटेड किंग्डम, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा  का एक संघ है। यह समूह आर्थिक विकास एवं संकट प्रबंधन, वैश्विक सुरक्षा, ऊर्जा एवं आतंकवाद जैसे वैश्विक मुद्दों पर आम सहमति को बढ़ावा देने के लिए सालाना बैठक का आयोजन करता हैं। ये देश दुनिया के सबसे अधिक औद्योगिक गतिविधियों वाले देश हैं । G–7 का पहला शिखर सम्मेलन नवंबर 1975 में पेरिस के नजदीक रैमबोनीलेट (Rambonilet) में आयोजित किया गया था। वर्तमान में G– 7 समूह के सदस्य देशों का वैश्विक निर्यात में 49%, औद्योगिक आउटपुट में 51% और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के परिसंपत्तियों में 49% हिस्सेदारी है।


G–20 (ग्रुप-20):-
सितंबर 1999 में G–7 देशों के वित्त मंत्रियों ने G–20 का गठन एक ऐसे अंतरराष्ट्रीय मंच के तौर पर किया था जो अंतरराष्ट्रीय वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने के साथ ब्रेटन वुड्स संस्थागत प्रणाली की रूपरेखा के भीतर आने वाले व्यवस्थित महत्वपूर्ण देशों के बीच अनौपचारिक बातचीत एवं सहयोग को बढ़ावा देता बीस का समूह (G–20) अपने सदस्यों के अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग और कुछ मुद्दों पर निर्णय करने के लिए प्रमुख मंच है। इसमें 19 देश और यूरोपीय संघ शामिल है।  G–20 के नेता वर्ष में एक बार बैठक करते हैं; इसके अलावा, वर्ष के दौरान, देशों के वित्त मंत्री और केंद्रीय बैंक के गवर्नर वैश्विक अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने, अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों में सुधार लाने, वित्तीय नियमन में सुधार लाने और प्रत्येक सदस्य देश में जरुरी प्रमुख आर्थिक सुधारों पर चर्चा करने के लिए नियमित रूप से बैठक करते रहते हैं। इन बैठकों के अलावा वरिष्ठ अधिकारियों और विशेष मुद्दों पर नीतिगत समन्वय पर काम करने वाले कार्य समूहों के बीच वर्ष भर चलने वाली बैठकें भी होती हैं। G–20 की शुरुआत, 1999 में एशिया में आए वित्तीय संकट के बाद वित्त मंत्रियों और सेंट्रल बैंक के गवर्नरों की बैठक के तौर पर हुई थी। वर्ष 2008 में G–20 के नेताओं का पहला शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था और समूह ने वैश्विक वित्तीय संकट का जवाब देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसकी निर्णायक और समन्वित कार्रवाई ने उपभोक्ता और व्यापार में भरोसा रखने वालों को शक्ति दी और आर्थिक सुधार के पहले चरण का समर्थन किया। वर्ष 2008 के बाद से G–20 के नेता आठ बार बैठक कर चुके हैं। G–20 शिखर सम्मेलन में रोजगार के सृजन और मुक्त व्यापार पर अधिक जोर देने के साथ वैश्विक आर्थिव विकास को समर्थन देने के उपायों पर फोकस जारी है। प्रत्येक G–20 अध्यक्ष हर वर्ष कई अतिथि देशों को आमंत्रित करता है। 
        G–20– वित्तीय स्थिरता बोर्ड, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन, संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक और विश्व व्यापार संगठन के साथ मिलकर काम करता है। कई अन्य संगठनों को भी G–20 की प्रमुख बैठकों में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है।


G–20 के सदस्य:-
G–20 के सदस्य वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का करीब 85%, वैश्विक व्यापार के 75% और विश्व की आबादी के दो– तिहाई से अधिक का प्रतिनिधित्व करते हैं।


G–20 के सदस्य हैं– अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, रिपब्लिक ऑफ कोरिया, मैक्सिको, रूस, सउदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ।


प्रबंधन  व्यवस्था:-
G–20 की अध्यक्षता एक प्रणाली के तहत हर वर्ष बदलती है जो समय के साथ क्षेत्रीय संतुलन को सुनिश्चित करता है। अनौपचारिक राजनीतिक मंच की अपनी प्रकृति को दर्शाते हुए G–20 का कोई स्थायी सचिवालय नहीं है। इसके बजाए, अन्य सदस्यों के साथ G–20 एजेंडा पर परामर्श और वैश्विक अर्थव्यवस्था में हुए विकास पर प्रतिक्रिया देने के लिए उन्हें एक साथ लाने की जिम्मेदारी G–20 के अध्यक्ष की होती है। 
निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए, अध्यक्षता को वर्तमान, तत्काल अतीत और भविष्य के मेजबान देशों से बनी "तिकड़ी" का समर्थन मिलता है। वर्ष 2015 में G– 20 की अध्यक्षता तुर्की ने की थी। तुर्की के मेजबानी वर्ष के दौरान, G– 20 तिड़की के सदस्य थे– तुर्की, ऑस्ट्रेलिया और चीन। वार्षिक शिखर सम्मेलन की तैयारी वरिष्ठ अधिकारियों के जिम्मे होती है जिन्हें 'शेरपा' कहा जाता है और जो जी-20 के नेताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। जी-20 नेतृत्व शिखर सम्मेलन की तैयारी में ऑस्ट्रेलिया कई बैठकें आयोजित कर रहा है जिनमें वित्तमंत्रियों, व्यापार मंत्रियों, रोजगार मंत्रियों, शेरपाओं, वित्तीय उपाध्यक्षों तथा विषय-विशिष्ट कार्य दलों की बैठकें शामिल हैं


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