नारी और दृष्टि
खेल की दुनिया में एथलीट हिमा दास ने चेक गणराज्य में आयोजित ट्रैक एंड फील्ड प्रतिस्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने का सिलसिला बरकरार रखा है। 21 दिन के अंदर छह स्वर्ण पदक जीतकर जो कारनामा हिमा ने कर दिखाया है, वह इतिहास बन गया है। सब जानना चाहते हैं इस असाधारण उपलब्धि का राज क्या है? 22 वर्षीय चतुर्वेदी ने अपना पूरा प्रशिक्षण हैदराबाद की वायु सेना अकादमी से लियाउन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा दियोलैंड से की जो कि मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में स्थित एक छोटा सा शहर है। उन्होंने २०१४ में अपनी स्नातक प्रौद्योगिकी वनस्थली विश्वविद्यालयए राजस्थान से करते हुए भारतीय वायु सेना की परीक्षा भी पारित की। उनके पिता संसदीय सरकार में एक कार्यकारी इंजीनियर और माता एक गृहिणी हैं। वे लड़ाकू विमान को अकेले उड़ाने वाली देश की पहली महिला फाइटर पायलट बन गई हैं। अवनी ने गुजरात के जामनगर में अपनी पहली ट्रेनिंग में अकेले मिग.21 बाइसन फाइटर ८ ल ' न उ ड, I य । । मध्यप्रदेश की रीवा की रहने वाली अवनी चतुर्वेदी देश की पहली महिला पायलट हैं, जिन्होंने अकेले जेट को उड़ाया है। इससे पहले महिलाओं के स्तर पर ऐसा कारनामा कभी नहीं हुआ। 18 जून 2016 को महिला फाइटर पायलट बनने के लिए पहली बार तीन महिलाओं अवनि चतुर्वेदी, मोहना सिंह और भावना कांत को वायुसेना में कमिशन किया गया था।
किसी के जन्म लेने का अधिकार छींन लिया जाये। किसी को जन्म लेने से पहले मार दिया जाये। जन्म लेते ही, अपवाद को छोड़कर, परिवार, समाज, संस्कृति, परम्परायें यहाँ तक की माता-पिता सभी के चेहरे उदास हो जाते है। परिवार जो सम्यक एक सहयोगी संगठन है, वह बेटी को, बहन को, मॉ को, पत्नी को यानी नारी को अपने गढ़े गये ढोंगी मान-सम्मान की रक्षा करने में, उस नारी की प्रकृति प्रदत्य स्वतन्त्रता को भावनात्मक और दंभपूर्ण अत्याचार से कुचल देता है। समाज की भूमिका एक बेटी को, एक नारी के जीवन को निरीह बना देती है, सबला से सब कुछ छीन कर अबला कह कर सम्बोधित करता है। जहॉ समाज नारी के सम्मान की बात करता है वहीं यही समाज ही तो है जो नारी को अपमानित करता है, उसकी स्वतन्त्रता को सरेआम चौराहों, सड़कों, घरों में खड़ा गन्दी निगाहों से देखता है। अपनी बेटियों को अपमानित करने वाले हम लोग ही है, समाज ही है। उनकी स्वतन्त्रता को बाधित करने वाले हम ही तो है। समाज और सामाजिक संगठनों को अपनी जकड़नपूर्ण सोच से निकलना होगा और जो सामाजिक संगठनों के ठेकेदार है, जिनकी जीविका ही इसी तरह चलती है उनसे समाज के प्रत्येक व्यक्ति को सावधान होना होगा। इसके साथ ही साथ ऐसे लोगों को दण्डित भी होना चाहिए। अपने निहित स्वार्थ और जकड़ी हुई मानसिकता के चलते नारी जैसी रचनात्मक प्रकृति की कृति की स्वतन्त्रता को बाधित करने का निरंतर दुस्साहस ये लोग कर रहे है। मात्र यह केवल इसलिए करते है क्योंकि वह अभी अपनी बेटी के पिता नहीं बन पाये है, भाई नही बन पाये है, सखा नही बन पाये है, पति नही बन पाये है, केवल अगर बन पाये है तो नारी को विलासिता की दृष्टि से देखने वाली जकड़नपूर्ण सोच। उधार और विकृत मानसिकता पर टिकी विचारधारा, केवल और केवल ऐयासी का अड्डा। समाज या व्यक्ति को केवल जकड़नपूर्ण सोच से निकलकर अपनी बेटी, बहन, और नारी को पूर्ण सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक आदि सम्पूर्ण उसके अधिकार देना होगा, नही तो समाज के पिछड़ेपन की गाथा समाज को कलंकित करती रहेगी। संस्कृति सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक, राजनीतिक, धार्मिक आदि सभी की पारिस्थितिकी की परिणति होती है, लेकिन जब इन सभी के संतुलन में विकृति आ जाती है तो संस्कृति के ताने-बाने संगठनों या कुछ लोगो के निहित स्वार्थ के इर्द-गिर्द घूमने लगते है। जो लोग संस्कृति का सहारा लेकर, संस्कृति की रक्षा के लिए भावनात्मकरूप से संस्कृति की मूल भावना का बलात्कार कर अपनी स्वार्थी, क्षाणिक, धूर्त निहित मानसिकता से संस्कृति के अर्थ को अपनी गढ़ी हुई परिभाषा से भोली-भाली जनता को चूसते है। जिसके कारण जनता आपस में ही पुरूष और नारी के रूप में लड़ती रहती है जहाँ उन्हें आपस में साथ-साथ रह कर सहचर के रूप में चलना है वही हम आपस में अपने को उलझा लेते है। मजे की बात यह है कि प्राकृतिक रूप से हम एक दूसरे के पूरक है ऐसे में हम अपना ही अहित करते है। फिर अधिकार और स्वतन्त्रता में अन्तर क्यों ? आज घरो में नारी और पुरूष के बीच द्वन्द जारी है। आज नारी भी अपने अस्तित्व को पहचान और तलाश रही है। फिर वह चाहे तीन तलाक का मामला हो, चाहे पर्दा प्रथा का मामला हो, शिक्षा का मामला हो, रहन-सहन का मामला हो, पहनावे, विचारधारा,संस्कृति, धर्म या नारी के अन्य किसी अधिकार का मामला हो। अब नारी इन सभी गढ़े गये अर्थ को समझने लगी है इनका पुरजोर विरोध करने लगी है। नारी अब अपनी जिन्दगी को किसी की सेवा करके, दासी बनकर मोक्ष प्राप्त करने की नही रही जो अभी तक उनके लिए ये झूठे विचार गढ़े गये थे। नारी अब अपनी स्वतन्त्रता को प्राप्त करना चाहती है क्योंकि इसी रास्ते ही मोक्ष व विकास की मंजिल पाई जा सकती है, जिससे दोनो पुरूष और महिला का विकास सम्भव है, साथ-साथ समाज और देश का। जिसमें नारी को अपनो का सहयोग भी मिलने लगा है। इतिहास इस बात का गवाह है जहाँ पर भी नेहरू जैसे पिता नारी को मिले है वहाँ इन्दिरा जैसी नारी बन कर समाज और परिवार को नारी ने अपना पूर्ण योगदान दिया है। परम्परायें कड़ी दर कड़ी जुड़ती चली जाती है, माला की तरह। उसमे लगातार नवीन सुगन्धित पुष्प गुथते चले जाते है, जिसका कारण उस माला में इतिहास की मौलिकता के साथ आधुनिकता की जरूरते भी गुथ कर समाज की सभ्य और उपयोगी दिशा का निर्धारण हो पाता है। लेकिन जब माला में वही जो नवीन नही है जो गठरी में बधे-बधे सड़ चुके होते है जिनसे हम माला पिराते है तो समाज गन्दगी और बदबू से भर जाता है। जिसका ही परिणाम है कि नारी के अस्तित्व को गन्दे, सड़े हुए फूलों द्वारा न पिरोया जाये, नही तो समाज से समाज में बदबू के सिवा कुछ नही मिलेगा। जिसका परिणाम आज हमारे सामने है। जहाँ पर हम दोनों को मिलकर जीवन जीना चाहिए, उसे हम बोझ की तरह जी रहे है और अपना तमाम समय इन्ही उलझनों और बेकार की बातों में बर्बाद करते है जिसका परिणाम होता है कि हमारे बच्चे अनाथ न होते हुए भी अनाथों की जिन्दगी जी रहे होते है। इसमें समाज के ठेकेदारों की दुकाने तो चल रही होती है।
लेकिन हमारा परिवार और हमारा समाज इस दर्द को हर समय मजबूरन झेल रहा होता है। इसका मात्र केवल और केवल केवल एक ही कारण है कि हम अपने स्वविवेक का प्रयोग नही कर रहे होते है जो स्वविवेक ईश्वर द्वारा दिया गया अमोघ अस्त्र है जिसके सामने सभी गढी गयी। हा होता है। हम स्वविवेक का प्रयोग नहीं करते इन धर्म और समाज के ठेकेदारों की बात करने लगते है। यह झूठ बोलकर, भगवान के प्रतिनिधि बनकर या स्वयं ही भगवान बनकर जनता को आपस में लड़ाकर ठगते हैं और उगते चले आ रहे है। नारी और पुरूष के मध्य एक ऐसी खाई इन ठेकेदारों स्वार्थी लोगो ने खीच दी है कि हम एक जगह रह कर भी एक दूसरे की भावनाओं को नहीं समझ पाते या समझना नही चाहते जो केवल हमे इत जा कवल हमें आपस में लड़ते और उलझाते हैं और मानसिक पीड़ से हम हर समय ग्रसित रहते है जिसका परिणाम केवल हमे ही नहीं पीड़ियों को और हमारे बच्चे को ही भोगनापड़ता है। इन ठेकेदारों की हम तो दूआसलाम सीख जाते है, इनको तो हम सम्मान देना सीख जाते है लेकिन अपनो का हम सब कुछ छीन लेते है। इन ठेकेदारों द्वारा ऐसी सामाजिक मर्यादाएं गढ़ दी गई है और इतनी गहरी कहानियाँ बना कर गढ़ दी गयी है कि हम इन्हें ही ईश्वर की दी गई अमिट धरोहर मान बैठे है जबकि व्यक्ति स्वयं ही मात्र ईश्वर की अनमोल धरोहर है और जो ईश्वर द्वारा दिया गया विवेक है, स्वविवेक है उसके सामने इनकी गढी विचारधाराओं का कोई अस्तित्व ही नही है, केवल इनसे हम और आप इनकी दुकान ही चलाने में मदद कर सकते है अपना परिवार और समाज का इनसे कोई भला नही हो सकता है। जो लोग इनकी इन गढ़ी हुई बातों को समझते है इनके द्वारा बनाये हुए समाज के सामने, इनकी मूर्खता के सामने दबाव बस ऐसे लोगो को झुकना पड़ता है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, उसे समाज में रहना है। अतः किसी की स्वतन्त्रता को बाधित न कर सभी को स्वतन्त्रता देकर ही हम अपने स्वविवेक और अस्तित्व को कायम रख पायेगे। बहुत बड़ा घृणित खेल नारी और पुरूषों के मध्य खेला गया है। बड़ी सफाई से खेला गया है और अपने स्वार्थी हित के लिए खेला गया है। आज दोनो को समाज के बीच खाई बनाने वाले धर्ती से बचना चाहिए। अपनी मौलिकता और स्वतन्त्रता को मिलजल कर अस्तित्व में लाना चाहिए। तभी हम एक सभ्य समाज की कल्पना कर सकते है। नारी का जन्म से पहले भी शोषण हुआ हैनारी का जन्म से पहले भी शोषण हुआ हैऔर जन्म के बाद क्षण-क्षण में उनका शोषण अपनों ने किया है। खाने से लेकर पहनने तक, शिक्षा उसे दी नही गयी, जो धर्म के ठेकेदारों की नीच सोच ने शिक्षा से धर्म के ठेकेदारों की नीच सोच ने शिक्षा से उन्हें वंचित रखा, जिसके कारण इनकी विचारधारा ही इनकी नियति बन गई प्रारब्ध समझ बैठी। शोषण का खेल इस तरह चलता रहा। आर्थिक अपंगता ने उन्हें गुलाम बना दिया, जहॉ पिता की सम्पत्ति में उन्हें कोई अधिकार नहीं वही ससुराल में भी आर्थिक अधिकार उनका नही रहा। घर का सम्पूर्ण कार्य नौकरानी की तरह करने के बाद भी उनके कार्य का कोई मूल्य नही लगाया गया। समाज ने तो नारी की स्वतन्त्रता को और भी बाधित किया। जब नारी अपने अस्तित्व के लिए लड़ती है तो यही समाज नारी को घूर घूर कर नोचने को दौड़ता है। घर और बाहर नारी को विलासिता की दृष्टि से ही समाज देखता है। एक बलात्कारी समाज में बलात्कार ही होगे। चाहे जितने भी भ्रमपूर्ण नियम कानून बना लिए जाये, जब तक नारी को पूर्ण अधिकार- शिक्षा, स्वस्थ, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक आदि नही मिलेगे, उसे विलसिता के केन्द्र बिन्दु पर जब तक हम रखेगे और जब तक बलात्कारी समाज की सोच नही नष्ट होगी, तब तक नारी के अस्तित्व का शारीरिक और मानसिक बलात्कार होता रहेगाजिसमे वह हमारी बेटी, बहन, मित्र, मॉ, पत्नी कोई भी इससे वंचित नही रहेगा। अगर किसी से शिक्षा, स्वस्थ, सम्पत्ति, विचार, स्वतन्त्रता आदि सभी छीन लिए जाये और उसे अज्ञानता, झूठी मर्यादाएं, गुलाम विचारधारा और दासता का जीवन जीने के लिए मजबूर कर दिया जाये तो कोई भी शक्तिशाली पराजय ही स्वीकार करने के लिए मजबूर हो जायेगा। पर्दा प्रथा, बहुविवाह, पहनावा, यह सभी नारी को प्रतिक्षणप्रतिपल गुलामी की दहलीज पर लांघने के लिए मजबूर करते है। समाज ढोंगियों और ढोंगी ठेकेदारों के हाथों बिक चुका है। आज पिता का, भाई को, पति को और प्रबुद्ध मानव को सम्वेदनशील होकर तथा स्वयं नारी को इन ढोगियों की बनाई दासतापूर्ण स्वाथी नियति से आग निकलना होगा। इन दुकान बन्द करनी होगी तथा पुरुष और नारी का एक दूसरे का बोझ न बन कर सहकर्मी, सहचर साथी समझ कर जीना होगा। तभी नारी और समाज निर्भय होगा तभी निर्भया का अर्थ साकार होगा। हर बेटी निर्भया होगी, हर मॉ निर्भया होगी, हर पत्नी निर्भया होगी, पूरा समाज निर्भय और विकास की सकारत्मक सोच के साथ तेज गति से आगे बढ़ेगा।
वेद प्रकाश
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