गाँधी को फिर क्यों मारा ?
गांधी की हत्या इसलिए हुई कि धर्म का नाम लेने वाली सांप्रदायिकता उनसे डरती थी। भारत-माता की जड़ मूर्ति बनाने वाली, राष्ट्रवाद को सांप्रदायिक पहचान के आधार पर बांटने वाली विचारधारा उनसे परेशान रहती थी। गांधी धर्म के कर्मकांड की अवहेलना करते हुए उसका मर्म खोज लाते थे और कुछ इस तरह कि धर्म भी सध जाता था, मर्म भी सध जाता था और वह राजनीति भी सध जाती थी जो एक नया देश और नया समाज बना सकती थी।
30 जनवरी पूरे देश में शहीद दिवस के मौके पर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि दी गई। 71 साल पहले 30 जनवरी के दिन नाथूराम गोडसे नाम के हत्यारे ने अहिंसा के इस पुजारी की हत्या कर दी थी। लेकिन शर्मनाक घटना ये हुयी कि इसी मौके पर उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में बुधवार को अखिल भारतिया हिन्दू महासभा के कुछ कार्यकर्ताओं ने एक शर्मनाक हरकत की। उन्होंने महात्मा गांधी के पुतले पर तीन गोलियां मारीं, पेट्रोल छिड़कर पुतले को फूंका और मिठाई बांटी। इतना ही नहीं इस दौरान 'गोडसे जिंदाबाद' के नारे भी लगाए गए। राष्ट्रपिता का इस तरह अपमान करने पर इन लोगों के खिलाफ कितनी सख्त कार्रवाई होगी अभी तो यही सवाल पूछा जा रहा है। हालांकि, फिलहाल पुलिस ने एक युवक को गिरफ्तार कर लिया है। इस घटना का वीडियो और फोटो फेसबुक ट्विटर सहित पूरे सोशल मीडिया पर आग की तरह फ़ैल गया। सोशल साइट पर वीडियो और तस्वीरें सामने आने के बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर ली है। उसमें कहा गया है कि कुछ पुलिसकर्मी जब गश्त पर थे तो उन्होंने देखा कि कुछ लोग गांधी जी की तस्वीर को गोली मार हैं, जिस पुलते को गोली मारी गई, उसमें खून जैसे रंग का तरल पदार्थ रखा हुआ था, जब उसे गोली मारी गई तो वह खून उसमें से बहने लगा। पुलिस ने बताया कि जब वह उन लोगों को पड़कने गई तो वे वहां से भाग गए।
एफआईआर में हिंदू महासभा की राष्ट्रीय महासचिव पूजा शकुन और उनके पति अशोक पांडे सहित नौ लोगों का नाम लिखा गया है। हालांकि, पुलिस ने अभी एक ही आरोपी को गिरफ्तार किया है। इसके बाद पूजा शकुन ने मीडिया को बताया कि उसके संगठन ने हत्या की 'रिक्रिएशन' करके नई परंपरा की शुरुआत की है। और अब दशहरा पर राक्षस राजा रावण के उन्मूलन के समान इसका अभ्यास किया जाएगा। नाथूराम गोडसे के सम्मान में हिंदू महासभा महात्मा गांधी पुण्यतिथि को शौर्य दिवस (शौर्य दिवस) के रूप में मनाती है।
एनसीईआरटी के प्रमुख रहे सुख्यात शिक्षाशास्त्री कृष्ण कुमार ने अपनी किताब ‘शांति का समर’ में एक बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल उठाया है- राजघाट ही हमारे लिए गांधी की स्मृति का राष्ट्रीय प्रतीक क्यों है, वह बिड़ला भवन क्यों नहीं है जहां महात्मा गांधी ने अपने आखिरी दिन गुजारे और जहां एक सिरफिरे की गोली ने उनकी जान ले ली? जब बाहर से कोई आता है तो उसे राजघाट क्यों ले जाया जाता है, बिड़ला भवन क्यों नहीं?
कृष्ण कुमार इस सवाल का जवाब भी खोजते हैं। उनके मुताबिक आधुनिक भारत में राजघाट शांति का ऐसा प्रतीक है जो हमारे लिए अतीत से किसी मुठभेड का जरिया नहीं बनता। जबकि बिड़ला भवन हमें अपनी आजादी की लड़ाई के उस इतिहास से आंख मिलाने को मजबूर करता है जिसमें गांधी की हत्या भी शामिल है- यह प्रश्न भी शामिल है कि आखिर गांधी की हत्या क्यों हुई?
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